२२ मार्च २०१४. हमारे आखिरी बोर्ड परीक्षा की तारीख. वो तारीख जिसका हर छात्र और छात्रा को इंतज़ार था. आखिर वो आ ही गई. लेकिन हमारा दिल दुबारा से उन बाइस दिनों को जीना चाहता था. लेकिन हमारा दिमाग और शरीर चिल्ला रहे थे, मना कर रहे थे दुबारा से उन दिनों को जीने के लिए. हमारा दिल तो सेंटी था. उसको तो बस उन बीते बाइस दिनों में हुई अच्छी बातें याद आ रही थी. यारों कि यारियाँ याद आ रही थी. उसको इस बात का गम हो रहा था कि कुछ दोस्तों से वो दुबारा नहीं मिल पायेगा. लेकिन हमारा दिमाग तो सेंटी नहीं था, वो तो समझदार था. उसे ही पता था कि क्या गुज़री है उसके ऊपर और हमारे शरीर के ऊपर. दिन रात एक करके महनत की उसने और शरीर ने मिलकर. साल भर से जो नहीं पढ़ा वो २२ दिनों में घोट लेना चाहते थे. दिल तो नादान है, दिमाग और शरीर में ताकत नहीं बची थी दुबारा से उस दबाव और टॉर्चर को सहने की. फ़ोन पर कभी परीक्षाओं के बीच में पड़ने वाली छुट्टियों में बात होती तो यही होती कि ज़ल्दी से आये २२ मार्च और अब जब आ गई थी तब मन सोच रहा था कि गलत ख्वाहिश की थी हमने, तब हमें अपनी गलती का अहसास हो रहा था, तब लग रहा था कि हम उन २२ दिनों के बेहतरीन दबाव वाले लम्हों को भुनाने में नाकाम रहे. पर नहीं अब बोर्ड परीक्षाओं में पड़े दबाव को दुबारा झेलने की हिमात शायद ही किसी में हो.
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