पहले लगता था कि बहुत समय है, पढ़ लेंगे. लेकिन साल का अंत आते-आते समय का महत्त्व पता लगता है. तब लगता है कि एक दिन में १६ घंटे पढ़ेंगे तब कुछ बात बनेगी. सलाह-मशवरा से जाना कि रात तो अपनी है, जितना चाहे पढ़ लो. लेकिन ये रात खुद भी सोती है और हमें भी सुलाती है. कहते तो ऐसा भी हैं कि सुबह चार बजे उठकर अच्छी पढाई होती है पर सुबह खुद भी उठती है, दूसरों को भी उठाती है, पर उठना कौन चाहता है?
No comments:
Post a Comment