लोग अपनी ज़िन्दगी अलग अलग तरह से जीते हैं. लेकिन एक तरह से जीने के बाद उनकी ख्वाहिश यही रह जाती है कि वे ज़िन्दगी दूसरी तरह से नहीं जी पाये. मसलन (उदाहरणतः) कोई व्यक्ति टेलेंटेड है, मसलन पढ़ाई में, वो ज़िन्दगी पढ़ पढ़ कर निकाल देता है और फिर बाद में ये सोचता है कि उसको ज़िन्दगी में खेल कूद में भी हिस्सा लेना चाहिए था. पर वो यही सोच कर बैठ जाता है कि अब कर भी क्या सकते हैं. आप कुछ भी कर लें ज़िन्दगी में हमेशा कुछ न कुछ छूट ही जाएगा. लेकिन मैंने अपनी ज़िन्दगी हर तरह से जी ली. इसलिए मुझे किसी बात का दुःख नहीं है. मैं पहले पढ़ने में काफी अच्छा हुआ करता था और अपना ज़्यादातर समय पढ़ाई में ही निकाल देता था. लेकिन बाद में मैंने अपनी ज़िन्दगी अलग तरह से जीनी स्टार्ट की. मैं बाकी बच्चों की तरह लोफरगिरी करने लगा. लेकिन बाद में अहसास हुआ कि पहली वाली लाइफ मुझे ज़यादा सूट करती थी. लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी. न मैं पहले जैसा बन सकता था और न ही अब जैसे जी रहा था, वैसे जी पा रहा था. "दूसरों के जैसा बनने कि चाहत में न मैं उनके जैसा बन पाया और खुद को भी खो दिया". अंत में मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप जैसे भी हैं बढ़िया हैं.
Monday, March 31, 2014
Wednesday, March 26, 2014
Importance of Time (Before Board Exams)
पहले लगता था कि बहुत समय है, पढ़ लेंगे. लेकिन साल का अंत आते-आते समय का महत्त्व पता लगता है. तब लगता है कि एक दिन में १६ घंटे पढ़ेंगे तब कुछ बात बनेगी. सलाह-मशवरा से जाना कि रात तो अपनी है, जितना चाहे पढ़ लो. लेकिन ये रात खुद भी सोती है और हमें भी सुलाती है. कहते तो ऐसा भी हैं कि सुबह चार बजे उठकर अच्छी पढाई होती है पर सुबह खुद भी उठती है, दूसरों को भी उठाती है, पर उठना कौन चाहता है?
Monday, March 24, 2014
Last Board Exam
२२ मार्च २०१४. हमारे आखिरी बोर्ड परीक्षा की तारीख. वो तारीख जिसका हर छात्र और छात्रा को इंतज़ार था. आखिर वो आ ही गई. लेकिन हमारा दिल दुबारा से उन बाइस दिनों को जीना चाहता था. लेकिन हमारा दिमाग और शरीर चिल्ला रहे थे, मना कर रहे थे दुबारा से उन दिनों को जीने के लिए. हमारा दिल तो सेंटी था. उसको तो बस उन बीते बाइस दिनों में हुई अच्छी बातें याद आ रही थी. यारों कि यारियाँ याद आ रही थी. उसको इस बात का गम हो रहा था कि कुछ दोस्तों से वो दुबारा नहीं मिल पायेगा. लेकिन हमारा दिमाग तो सेंटी नहीं था, वो तो समझदार था. उसे ही पता था कि क्या गुज़री है उसके ऊपर और हमारे शरीर के ऊपर. दिन रात एक करके महनत की उसने और शरीर ने मिलकर. साल भर से जो नहीं पढ़ा वो २२ दिनों में घोट लेना चाहते थे. दिल तो नादान है, दिमाग और शरीर में ताकत नहीं बची थी दुबारा से उस दबाव और टॉर्चर को सहने की. फ़ोन पर कभी परीक्षाओं के बीच में पड़ने वाली छुट्टियों में बात होती तो यही होती कि ज़ल्दी से आये २२ मार्च और अब जब आ गई थी तब मन सोच रहा था कि गलत ख्वाहिश की थी हमने, तब हमें अपनी गलती का अहसास हो रहा था, तब लग रहा था कि हम उन २२ दिनों के बेहतरीन दबाव वाले लम्हों को भुनाने में नाकाम रहे. पर नहीं अब बोर्ड परीक्षाओं में पड़े दबाव को दुबारा झेलने की हिमात शायद ही किसी में हो.
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