इस साल, मतलब कि २०१० से, सी.बी.एस.ई. ने पढाई का नया सिस्टम लागू किया जिसका नाम है सी.सी.ई. इससे उन्होंने कहा था कि बच्चों पर से पढाई का बोझ कम हो जायेगा और अध्यापक/अध्यापिकाओं पर भी; पर मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता. इससे पढाई का बोझ और ज्यादा बढ़ गया है. इस पर हमारी अंग्रेजी की किताब में एक कविता भी है, हिंदी में, और उसमे दो पंक्तियाँ मुझे गलत लगी और वो ये थी - परिणामों के भय से अब कोई बालक नहीं डरेगा और एक कुछ ऐसे थी परीक्षा से कोई नहीं घबराएगा. अगर मैने कोई बात गलत लिखी हो तो मुझे माफ़ करना. पर हम कर भी क्या सकते हैं. हम तो बस अपना गुस्सा प्रकट कर सकते हैं. अगर हम कुछ कर सकते तो ये सिस्टम कब का ख़त्म हो चुका होता. क्यों भाइयों? मैने सी.सी.ई. के बारे में खोजा तो मुझे हर जगह उसकी बुराई ही दिखी सिर्फ कुछ न्यूज वाली और सी.बी.एस.ई. की वेबसाइट्स को छोड़कर. जैसे आजकल चारा घोटाला, २ जी घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, आदर्श घोटाला चल रहे हैं, ऐसे ही सी.सी.ई. घोटाला चलना चाहिए. आप कहेंगे कि ये सब घोटाले तो रुपयों की हेरा फेरी कि वजह से हुए हैं, इसमें सी.सी.ई. कहाँ से आ गया, सी.सी.ई. में तो रुपयों का कोई घोटाला नहीं हुआ है पर जनाब इसमें शिक्षा का घोटाला तो हुआ है.
आज का मेरा ये ब्लॉग यही ख़त्म होता है. और हाँ इस ब्लॉग को पढने के बाद आप खाली हाथ मत बैठ जाना. इसके बारे में आवाज उठाना.
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