Thursday, December 2, 2010

02/12/10 - C.C.E.

इस साल, मतलब कि २०१० से, सी.बी.एस.ई. ने पढाई का नया सिस्टम लागू किया जिसका नाम है सी.सी.ई. इससे उन्होंने कहा था कि बच्चों पर से पढाई का बोझ कम हो जायेगा और अध्यापक/अध्यापिकाओं पर भी; पर मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता. इससे पढाई का बोझ और ज्यादा बढ़ गया है. इस पर हमारी अंग्रेजी की किताब में एक कविता भी है, हिंदी में, और उसमे दो पंक्तियाँ मुझे गलत लगी और वो ये थी - परिणामों के भय से अब कोई बालक नहीं डरेगा और एक कुछ ऐसे थी परीक्षा से कोई नहीं घबराएगा. अगर मैने कोई बात गलत लिखी हो तो मुझे माफ़ करना. पर हम कर भी क्या सकते हैं. हम तो बस अपना गुस्सा प्रकट कर सकते हैं. अगर हम कुछ कर सकते तो ये सिस्टम कब का ख़त्म हो चुका होता. क्यों भाइयों? मैने सी.सी.ई. के बारे में खोजा तो मुझे हर जगह उसकी बुराई ही दिखी सिर्फ कुछ न्यूज वाली और सी.बी.एस.ई. की वेबसाइट्स को छोड़कर. जैसे आजकल चारा घोटाला, २ जी घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, आदर्श घोटाला चल रहे हैं, ऐसे ही सी.सी.ई. घोटाला चलना चाहिए. आप कहेंगे कि ये सब घोटाले तो रुपयों की हेरा फेरी कि वजह से हुए हैं, इसमें सी.सी.ई. कहाँ से आ गया, सी.सी.ई. में तो रुपयों का कोई घोटाला नहीं हुआ है पर जनाब इसमें शिक्षा का घोटाला तो हुआ है.

आज का मेरा ये ब्लॉग यही ख़त्म होता है. और हाँ इस ब्लॉग को पढने के बाद आप खाली हाथ मत बैठ जाना. इसके बारे में आवाज उठाना.

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Wednesday, October 20, 2010

20/10/10 - a morning I never seen.

आज मेरा दिन कुछ ख़ास नहीं गया. आज स्कूल में सुबह मैं अपने दोस्तों से कह रहा था कि मैं सुबह के वक़्त खुश रहने की कोशिश करता हूँ. फिर असेम्बली के बाद हम अपनी अपनी क्लासेस में जा रहे थे कि पी.टी.आई सर ने सब पर अपना गुस्सा दिखाना शुरू कर दिया. पहले उन्होंने किसको मारा मुझे ये तो नहीं पता पर वो सबको बहुत बुरी तरह मार रहे थे. वो जब मेरी रो में आये और जब उन्होंने मुझसे आगे वाले बच्चे को मारा तब मेरा दिल धड़कना बंद हो गया और फिर मुड़कर उन्होंने मुझे देखा और मुझको डांटा तब तो मेरी हालत बिलकुल ही बदतर हो गयी पर उन्होंने मुझे पीटा नहीं. तब मेने भगवान् को शुक्रिया अदा किया. और फिर सब अपनी क्लासेस में आ गए. फिर मेने अपने एक दोस्त से पूछा की सर गुस्सा क्यों कर रहे थे तब उसने बताया की फादर (प्रिंसिपल) ने उनसे ये कहा था की तुम बिलकुल भी discipline नहीं रख रहे हो स्कूल में और इसलिए उनको गुस्सा आ गया था. फिर मैं सोचने लगा की इतनी सी बात के लिए सर ने इतने बच्चों को मारा और वो भी बिना किसी बात पर. खैर छोडो इस बात को. इस बात से मेरा पढाई में भी मन नहीं लग पाया. और इस तरह मैं सुबह के वक़्त खुश नहीं रह पाया. (पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढेगा इंडिया).

चलो आज के लिए मैं इस ब्लॉग को यही ख़तम करता हूँ. बाय.

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